अगलाड नदी का ऐतिहासिक राजशाही मौण मेले मे ग्रामीणो ने पकड़ी मच्छी

अगलाड नदी का ऐतिहासिक राजशाही मौण मेला मे ग्रामीणो ने पकड़ी मच्छी

सुप्रसिद्ध जौनपुर का पौराणिक राजशाही से चला आ रहा मौण मेला अगलाड़ नदी के भिंडे नामें तोक पर ढोल नागडे व तिलक लगाकर नदी में में मौण डाला गया । मौण डालते ही हजारो की संख्या में आए मौणार्थी नदी में मच्छी पकडने को उतरे ।
गुरुवार को जौनपुर की लोक संस्कृति पर आधारित पौराणिक समय से चली आ रही परंपरा मौण मेला त्यौहार अगलाड़ नदी में पंतीदार पट्टी लालूर के 9 ग्रामीणों द्वारा हर्ष उल्लास के साथ नदी डाला गया । प्राकृतिक औषोधि टिमरु पाउडर से मच्छी घायल हो जाती , और कुछ देर बाद मच्छी अपनी उसी स्थिती पर आ जाती है। घायल मच्छी को मौणर्थी को पकडने के लिए स्थानीय उपकरण में कुडियाला,
फटियाडा, जाल आदि के द्वारा लगभग 4 किमी नदी की पराधि में मच्छी पकडने का सिल सिला चलता है। मौण की मच्छी का स्वाद तो लाजबाव ही क्या कहना ।

यह मौणा मेला सन् 1811 में टिहरी नरेश इस परंपरा की शुरुआत करते हुए 114 गांव के ग्रामीण में पट्टी
अठज्यूला , छज्यूला , सिलवाड, लालूर, गोडर ,जौनसार आदि क्षेत्र के ग्रामीण अगलाड़ नदी में मौणा के लिए मच्छी पकड़ने को आते है। बीच में आपसी विवाद के चलते 3 – 4 साल तक बंद होने पर क्षेत्र की जनता से पुनः आरंभ् करने की मांग पर टिहरी राजा नरेन्द्र शाह ने 1949 फिर से इन मौणा मेला को शुरू करने के बाद से आज भी मेला एकता व आपसी भाई -चारें व सौन्दर्य टी मिशाल के साथ इस संस्कति व परपंरा को बेखूबी से निभाते आ रहे है ।
इस अनेखों मेले को देखने के लिए देश विदेश से भारी तादात में यहां शिरकत कई अद्भुत नजारे का भरापुर आन्दन व लुप्त उठाते है।
इस बार मौण निकालने व नदी में डालने की बारी ( पंतीदार )ग्राम देवन , ग्राम घन्सी , ग्राम खडकसारी, ग्राम मीरागांव , ग्राम हडियांगांव , ग्राम छानी, ग्राम टिकरी, ग्राम ढकरोल व सल्टवाड के ग्रामीणो द्वारा मौण (टिमरू पाऊडर ) मौणा नदी उडेला गया ।

उत्तराखंड वार्ता

उत्तराखंड वार्ता समूह संपादक

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