घी-त्यार स्पेशल -: घ्यू नि खा ला तो हगिल जन्म में बणला गनेल

घी-त्यार : घ्यू नि खा ला तो हगिन जनम मा बणला गनेल
उत्तराखंड में “घी त्यार” क्यों मनाया जाता है और इसका महत्व क्या है ?

आप सभी को नरेंद्र पिमोली की तरफ से “घी त्यार” की बधाई

आज घ्यु संक्रांति छु आपु सबनके ढेरों शुभकामनाएं, लगभग हर महिनक संक्रांति हु हमर पहाड़ में प्रकृति से जुड़ी कोई ना कोई त्यार जरूर आ, य तयार भाद्रपद क संक्रांति हु मनायी जा, य त्यार खेति बाडी और धिनाई पानी से जुडी छु, बारिश क कारण सब जगह प्रकृति हरि भरी और फसलों में ले कलि फुटी रुनि, और गाय भैसक दूधक ले इफरात रू,
पैली समय में अधिक दुध होणक वजहल वीक घ्यु बनुछी और नानतीनों को खिलूछी, और जो नि खाछी उके य कबेर डराय जा छि कि जो आज घ्यु नि खाल वो अगिल जन्म में गनेल बन जाले,
आज मासक दाल (उडद) दालक बड़ ,कचौड़ी और बेडु रोट ले बनायी जा,
और गाबा क साग खीरा, तुरई साग पेली भगवान जु के चढाई जा और वीक साग ले बनायी जा,

कुमाऊं में हरेक हिंदी मास के पहले दिन यानी संक्रांति को लोक पर्व मनाने की परंपरा रही है। इस बार 17 अगस्त को घी-त्यार के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन ‘घी’ खाना जरूरी माना जाता है। पुरानी मान्यता है कि जो इस दिन घी नहीं खाता, वह अगले जन्म में गनेल (घोंघा) बनता है। दुधारू गाय और भैंस पालने में कड़ी मेहनत लगती है, जो ऐसा करते हैं वही घी का सेवन कर सकते हैं। लेकिन आलसी लोगों को यह नसीब नहीं हो सकता है। इसलिए गनेल बनने का मतलब यह है कि अगर आप मेहनती नहीं हैं तो फिर आपकी फसल अच्छी नहीं होगी और पशुधन से भी वंचित रहेंगे।
भाद्रपद मास की संक्रान्ति, जिस दिन सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करता है और जिसे सिंह संक्रांति कहते हैं, यहाँ घी-त्यार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सभी घी का सेवन अवश्य करते हैं और परंपरागत मान्यता है कि जो इस दिन घी नहीं खाता उसे अगले जन्म में गणेळ के रूप में पैदा होना पड़ता है।
उत्तराखण्ड में हिन्दी मास (महीने) की प्रत्येक १ गते यानी संक्रान्ति को लोक पर्व के रुप में मनाने का प्रचलन रहा है।
उत्तराखंड में यूं तो प्रत्येक महीने की संक्रांति को कोई त्योहार मनाया जाता है।
भाद्रपद (भादो)महीने की संक्रांति जिसे सिंह संक्रांति भी कहते हैं ।
इस दिन सूर्य “सिंह राशि” में प्रवेश करता है और इसलिए इसे सिंह संक्रांति भी कहते हैं।
उत्तराखंड में भाद्रपद संक्रांति को ही घी संक्रांति के रूप में मनाया जाता है।
यह त्यौहार भी हरेले की ही तरह ऋतु आधारित त्यौहार है,
हरेला जिस तरह बीज को बोने और वर्षा ऋतू के आने के प्रतीक का त्यौहार है |
वही “घी त्यार” अंकुरित हो चुकी फसल में बालिया के लग जाने पर मनाये जाने वाला त्यौहार है |

यह खेती बाड़ी और पशु के पालन से जुड़ा हुआ एक ऐसा लोक पर्व है |
जो की जब बरसात के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में बालियाँ आने लगती हैं ।
तो किसान अच्छी फसलों की कामना करते हुए ख़ुशी मनाते हैं।
फसलो में लगी बालियों को किसान अपने घर के मुख्य दरवाज़े के ऊपर या दोनों और गोबर से चिपकाते है |
इस त्यौहार के समय पूर्व में बोई गई फसलों पर बालियां लहलहाना शुरु कर देती हैं।
साथ ही स्थानीय फलों, यथा अखरोट आदि के फल भी तैयार होने शुरु हो जाते हैं।
पूर्वजो के अनुसार मान्यता है कि अखरोट का फल घी-त्यार के बाद ही खाया जाता है । इसी वजह से घी तयार मनाया जाता है |

उत्तराखंड वार्ता

उत्तराखंड वार्ता समूह संपादक

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