उत्तराखंड-: बागेश्वर की बेटी मंजू साह, पिरूल से कमाल कर संवार रही पहाड़ की 150 महिलाओं का जीवन…..

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले की तहसील द्वाराहाट के नगर पंचायत द्वाराहाट के वार्ड हाट निवासी महिला मंजू साह आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं उनके पिरूल से किए जाने वाले कामों के जरिए आज मंजू साह को उत्तराखंड के अलावा देश के विभिन्न स्थानों में पहचान मिली है।

मंजू साह मूल रूप से बागेश्वर के कपकोट की है,उनकी पढ़ाई शिशु मंदिर असों,हाईस्कूल इंटर कॉलेज असों और इंटरमीडिएट कपकोट इंटर कॉलेज से हुई,


गढ़वाली कुमाऊनी वार्ता से बातचीत पर बताया मंजू साह ने वह अल्मोड़ा जिले के राजकीय इंटर कॉलेज ताड़ीखेत में प्रयोगशाला सहायक पद पर कार्यरत हैं. पिरूल के इस तरह के इस्तेमाल की वजह से उन्हें एक अलग पहचान मिली है.अपनी बेजोड़ हस्तशिल्प कला की वजह से उन्हें कई बार सम्मानित किया जा चुका है.
उत्तराखंड में अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट के हाट गांव की रहने वाली मंजू साह ने अपनी बेजोड़ हस्तशिल्प कला से पहाड़ के जंगल में उगने वाले चीड़ के पत्ते (पिरूल) से जीवनयापन का जरिया खोज निकाला है. इस वजह से उन्हें प्रदेश में ‘पिरूल वुमेन’ की पहचान मिली है. लोग उन्हें इसी नाम से पहचानने लगे हैं. मंजू पिरूल से टोकरी, पूजा थाल, फूलदान, आसन, पेन स्टैंड, डोरमैट, टी कोस्टर, डाइनिंग मैट, ईयररिंग, फूलदान, मोबाइल चार्जिंग पॉकेट, पर्स, हैट, पेंडेंट, अंगूठी, सहित तमाम तरीके के साज-सज्जा के उत्पाद बना रही हैं,जो लोगों को बेहद पसंद आ रहे हैं. साथ ही इससे लोगों की आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है…

मंजू साह राजकीय बालिका इंटर कॉलेज ताड़ीखेत रानीखेत में प्रयोगशाला सहायक के रूप में कार्यरत हैं और वहीं दूसरी ओर चीड़ के पत्ते जिन्हे पिरुल कहा जाता है इसी पिरुल से मंजू साह कई सामग्री बनाती हैं चाहे वो रशोई में काम आने वाली चीजें जिसमे रोटी रखने की टोकरी हो या फिर तेज धूप से बचने के लिए सर पर पहनने के लिए टोपी हो या महिलाओं के कानों के कुंडल हो या फिर दरवाजे के ऊपर लगने वाले झूमर या गाड़ी में लगाने वाले सजावटी सामान ।कहना चाहिए कि मंजू साह वो सारी चीजे बनाती हैं जो रोजमर्रा काम में आती हैं ।मंजू साह से जब पूछा गया कि आपको ये खयाल कब और कैसे आया तो पिरुल वूमेन मंजू बताती हैं कि बचपन से देखती आ रही हैं कि जंगल हर वर्ष आग की चपेट में आ जाते हैं जिसके चलते कई पशु पक्षी इस दावाग्नि की भेंट चढ़ जाते हैं साथ ही पर्यावरण दूषित होता है और जब इस दावाग्नि के पीछे का रहस्य सामने आया तो वह था पिरुल।क्योंकि पिरुल में काफी मात्रा में लीसा पाया जाता है जो अति ज्वलनशील होता है जरा सी आग की चपेट में आने से ही भड़क उठती है आग की लपटें।इसी वजह से सोचा कि। इस पिरुल से कोई अच्छा उपयोग किया जाए तो तब से ही यह कार्य कर रही हैं आज उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल गड़वाल मंडल के साथ साथ देश के विभिन्न हिस्सों में मंजू साह कार्यशाला भी चलाती हैं जिससे कि महिलाएं स्वावलंबी हो सकें।आज इनके द्वारा बनाए गए उत्पाद बाजार में बहुत पसंद किए जा रहे हैं मगर बाजार की पूर्ति वो नही कर पा रही हैं।मंजू साह ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरीके से कार्यशाला चलाती हैं। वर्ष 2019 में कोलकाता में इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल मंजू साहू अवार्ड से नवाजा गया और वही अरविंद सोसाइटी जो टीचिंग अवार्ड है उत्तराखंड का शून्य निवेश नवाचार पर ऑल इंडिया स्तर पर वर्ष 2020 में इन्हें अवार्ड से सम्मानित किया गया और वही ओहो रेडियो द्वारा 9 नवंबर को राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर भोपाल में इंडिया इंटरनेशनल साइंस प्रोग्राम के तहत इन्हें सम्मान से नवाजा गया गढ़वाल में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग 2020 में 25 ग्राम सभाओं की करीब 150 महिलाओं के साथ इन्होंने स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाते हुए उन्हें स्वावलंबी बनाने का काम किया अभी वर्तमान में ऑनलाइन कार्यशाला शिमला झारखंड छत्तीसगढ़ इन क्षेत्रों में कार्य चल रहा है। बता दें चीड़ का जंगल उत्तराखंड के 80 फ़ीसदी जंगलों में इस वृक्ष का राज है जो फरवरी माह से जून तक पत्ते गिरने का काम होता है और यही समय जंगलों में आग लगने का होता है और दावा नहीं भड़कने का काम यही पिरुल करता है।जंगलों को बचाने के लिए प्रेरित करती मंजू साह पिरुल वूमेन की पहल।

उत्तराखंड वार्ता

उत्तराखंड वार्ता समूह संपादक

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